रतन टाटा की पहली पुण्यतिथि: दूरदर्शी लीडर की याद में पूरा देश भावुक

Neha Verma | 09 Oct 2025 रतन टाटा की पहली पुण्यतिथि: दूरदर्शी लीडर की याद में पूरा देश भावुक

नई दिल्ली: आज देश उस महान व्यक्तित्व को याद कर रहा है जिसने भारतीय उद्योग जगत को नई दिशा दी — रतन टाटा। 9 अक्टूबर को उनकी पहली पुण्यतिथि है। पिछले साल इसी दिन भारत ने एक ऐसे नेता को खो दिया, जिसकी सादगी और इंसानियत ने करोड़ों लोगों का दिल जीत लिया था।

रतन टाटा सिर्फ एक बिजनेस लीडर नहीं थे, बल्कि एक ऐसे इंसान थे जो लोगों से जुड़ना जानते थे। उनका जाना एक ऐसे वक्त में हुआ, जब टाटा ट्रस्ट्स के भीतर मतभेद गहराते जा रहे थे — यह ट्रस्ट टाटा संस में 66% हिस्सेदारी रखता है।


जमीनी इंसानियत के प्रतीक थे रतन टाटा

रतन टाटा की सबसे बड़ी खासियत थी उनकी सादगी।
उन्हें अक्सर मुंबई के कोलाबा इलाके में लोगों से मिलते-जुलते देखा जाता था — बिना सुरक्षा घेरे, बिना किसी तामझाम के। वे समाज सेवा के कार्यों में खुद जुड़कर योगदान देते थे।

1962 में टाटा ग्रुप में शामिल होने के बाद उन्होंने कई दशकों तक अपनी निष्ठा और दृष्टि से कंपनी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। 1991 में जब उन्होंने टाटा संस का नेतृत्व संभाला, तब ग्रुप ने वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई।


एक साल में टाटा ग्रुप के सामने कई चुनौतियां

रतन टाटा के निधन के बाद, टाटा ट्रस्ट्स में आंतरिक मतभेद तेज हो गए।
नोएल टाटा के नेतृत्व वाले गुट और मेहली मिस्त्री के नेतृत्व वाले दूसरे गुट के बीच बोर्ड नियुक्तियों और प्रबंधन से जुड़े मुद्दों पर मतभेद हैं।

मेहली मिस्त्री, शापूरजी पल्लोनजी परिवार से हैं, जिनकी टाटा संस में 18.37% हिस्सेदारी है।
10 अक्टूबर को होने वाली टाटा ट्रस्ट्स की अगली बोर्ड बैठक में इस विवाद को सुलझाने की उम्मीद की जा रही है।

हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने भी दोनों गुटों से मुलाकात की और उनसे "टाटा के तरीके" से काम करने की सलाह दी ताकि ग्रुप के संचालन पर कोई नकारात्मक असर न पड़े।


टाटा ग्रुप के कामकाज पर असर

इस अंदरूनी विवाद का असर 180 अरब डॉलर के इस बड़े समूह के संचालन पर पड़ने की आशंका है।
सरकार भी अब इस पर नज़र रखे हुए है ताकि समूह की विरासत और भरोसेमंद छवि को किसी भी तरह का नुकसान न पहुंचे।

यह विवाद यह भी दिखाता है कि भारत के सबसे सम्मानित व्यापारिक घरानों में भी कॉर्पोरेट गवर्नेंस कितना संवेदनशील विषय है।


व्यापार से परे एक विरासत

रतन टाटा की असली विरासत सिर्फ कारोबार तक सीमित नहीं थी।
वे पद्म विभूषण (2008) से सम्मानित थे और हमेशा अपनी सफलता का श्रेय अपनी टीम को देते थे।

उन्होंने कैंसर इलाज के अस्पताल, शिक्षा संस्थान, और ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
मुंबई में उन्होंने जानवरों के लिए भारत का सबसे बड़ा tertiary care center भी बनवाया।

उनकी यही विनम्रता और सेवा भावना उन्हें दूसरों से अलग बनाती थी।


अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

प्र.1: रतन टाटा का निधन कब हुआ था?
उत्तर: रतन टाटा का निधन 9 अक्टूबर 2024 को हुआ था।

प्र.2: टाटा ट्रस्ट्स में विवाद किस वजह से है?
उत्तर: ट्रस्टियों के बीच बोर्ड नियुक्तियों और प्रबंधन के अधिकारों को लेकर मतभेद चल रहे हैं।

प्र.3: टाटा ग्रुप पर इस विवाद का क्या असर हो सकता है?
उत्तर: इस विवाद से समूह के प्रबंधन और छवि पर असर पड़ सकता है, हालांकि सरकार स्थिति पर नज़र रखे हुए है।

प्र.4: रतन टाटा की प्रमुख उपलब्धियां क्या हैं?
उत्तर: उन्होंने टाटा ग्रुप को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया, समाज सेवा में योगदान दिया और पशु कल्याण, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए काम किया।

प्र.5: क्या टाटा ग्रुप का भविष्य सुरक्षित है?
उत्तर: हां, टाटा की विरासत और मूल्य आज भी ग्रुप के हर फैसले की नींव हैं।

यूज़र कमेंट्स

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Rohit Sharma 09 October 2025

रतन टाटा जैसे नेता बार-बार नहीं आते। उनकी सादगी और ईमानदारी को सलाम।

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Priya Mehta 09 October 2025

रतन टाटा सिर्फ बिजनेस मैन नहीं थे, वो एक अच्छे इंसान भी थे। उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा।

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Ankit Verma 09 October 2025

टाटा ग्रुप को उनके मूल्यों पर चलना चाहिए, यही असली श्रद्धांजलि होगी।

N
Neha Kapoor 09 October 2025

आज भी उनकी कही बातें प्रेरणा देती हैं – "अगर आप लोगों के लिए कुछ कर सकते हैं, तो जरूर करें।"

V
Vikas Singh 09 October 2025

टाटा ट्रस्ट्स का झगड़ा देखकर दुख होता है, रतन टाटा होते तो सब सुलझा लेते।

R
Rahul Jain 09 October 2025

रतन टाटा भारत की सबसे साफ और ईमानदार छवि वाले इंडस्ट्रियलिस्ट थे।

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